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________________ (१७) जिम दिनचोरा ॥ देवउंहि श्राकाशे वाजी, 4 में नरेसर श्राविउँ गाजी ॥ १० ॥ कुसुमवृष्टि वि रचे तिहां देवा, चोशठ इंच जसु मागे सेवा ॥चा मर बत्र सिरोवरि सोहे, रूपें जिणवर जग सह मोहे ॥ ११॥ उवसम रसजर नरी वरसंता, जोज न वाणि वखाण करंता ॥जाणवि वर्धमान जिण पाया ॥ सुर नर किन्नर आवे राया ॥ १२ ॥ कंतिस मूहें फलफलकंता, गयण विमाणे रण रणकंता ॥ पेखवि इंदनू मन चिंते, सुर श्रावे श्रम्ह जगन होवंते ॥ १३ ॥ तीर तरंक जिम ते वहता, सम वसरण पहोता गहगहता ॥ तो अजिमाने गोय म जपे, श्ण अवसरे कोपें तणु कंपे ॥ १४ ॥ मूढ लोक अजाणिलं बोले, सुर जाणंता श्म कांश मोले ॥ मूआगल को जाण जणीजें, मेरु अवर केम उ पमा दीजें ॥ १५ ॥ ॥वस्तुलंद ॥ ॥ वीर जिणवर वीर जिणवर नाण संपन्न ॥ पा वापुरि सुरमहिय पत्तनाह संसार तारण ॥ तिहिं देवेहिं निम्मविय समवसरण बहु सुरककारण॥ जिणवर जग उजोय करे तेजें करि दिनकार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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