________________
( 229 )
ल जीत छ, गुण मेल्हा संचिय ॥ श्रहवा नि पुव जम्म, जिवर इस चित्र ॥ रंजा पउमा गौ रीगंगा, रतिहा विधि वंचिय ॥ ५ ॥ नहिं बुध नहिं गुरु कवि न कोइ, जसु श्रगल रहि ॥ पंचसया गु पात्र छात्र, हिं परवरि ॥ करे निरंतर यज्ञक र्म, मिथ्यामति मोहिय ॥ इण बल होशे चरम नाण, दंसह वि सोहिय ॥ ६ ॥ ॥ वस्तुछंद ॥
॥ जंबूदी वह जंबूदी वह जरह वासम्मि, खोणीतल मंगणो ॥ मगध देस सेणिय नरेसर, वरगुवर गाम तिहां ॥ विप्प वसे वसुनू सुंदर तसु नका पुद वी सयल, गुण गण रूव निहाण ॥ ताण पुत्त वि द्यानिलर्ज, गोयम अतिहि सुजाण ॥ ७ ॥
॥ द्वितीय भाषा ॥
॥ चरम जिणेसर केवलनाणी, चढविह संघ प जाणी ॥ पावापुर सामी संपत्तो, चडविह दे वनिकायें जुत्तो ॥ ८ ॥ देवें समवसरण तिहां की जें ॥ जिए दीठे मिथ्यामति खीजें ॥ त्रिभुवनगु रु सिंहास बगे, ततखिण मोह दिगंतें पो ॥ ए ॥ क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाग
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Educationa International