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( १२६ )
॥ अथ ॥
॥ श्री गौतमस्वामीनो रास प्रारंभः ॥
॥ प्रथम जाषा ॥
॥ वीर जिणेसर चरणकमल, कमला कयवासो ॥ पणमवि पणिसुं सामि साल, गोयम गुरु रासो ॥ मण तणु वयण एकंत करवि, निसुणो जो जवि यां ! ॥ जिम निवसे मुम्ह देह गेह, गुण गए गह गहिया ॥ १ ॥ जंबूदीव सिरि नरह खित्त, खोणी तल मंगण ॥ मगधदेस से लिय नरीस, रिजदलबल खंगण ॥ धणवर गुवर गाम नाम, जिहां जणगुण सजा || विप्प वसे वसुनू तब, जसु पुहवी ना ॥ २ ॥ ताण पुत सिरिइंदनू, नूवलय पसिद्धो ॥ चदह विद्याविविद रूप, नारीरस विद्धो ॥ वि नय विवेक विचार सार, गुण गणह मनोहर || सात हाथ सुप्रमाण देह, रूपें रंजावर ॥ ३ ॥ नयण व या कर चरण जिए, वि पंकज जल पाडिय ॥ ते जें तारा चंद्र सूर, आकास जमाडिय ॥ रूवें मयण अनंग करवि, मेहि निरधाडीय ॥ धीरमें मेरु गंजीर सिंधु, चंगम चयचाडिय ॥ ४ ॥ पेख विनि रुवम रूव जास, जिए जंपे किंचिय ॥ एकाकी कि
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