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(७५) वजिथं ॥ देव दाणव नरिंद वंदियं, संतिमुत्तम महातवं नमे ॥ खित्तयं ॥ २५॥ अंबरंतर विश्रा रणियाहिं, ललिथ हंस वहु गामिणियाहिं ॥ पी ण सोणिथण सालिणिया हिं, सकल कमलदल लो अणियाहिं ॥ दीवयं ॥ चतुर्तिः कलापकं ॥ २६ ॥ पीण निरंतर थणजर विणमिश्र गायलयाहिं ॥ म णि कंचण पसिढिलमेहल सोहिअ सोणितडाहिं ॥ वर खिंखिणी नेउर सतिलय वलय विजूस पिया हिं ॥ रश्कर चउर मनोहर सुंदर दंसणियाहिं ॥ चित्तकरा ॥ २७ ॥ देवसुंदरीहिं पायवंदियाहिं वंदिया य जस्स ते सुविकमा कमा अप्पणो नि मालएहिं मंमणोण पगारएहिं केहिं केहिं वि अ वंग तिलयपत्तलेहनामएहिं चिल्सएहिं संगयं ग याहिं जत्तिसंनिविठ वंदणा गयाहिं, हुंति ते वं दिया पुणोपुणो ॥ नाराय ॥ २७ ॥ तमहं जिण चंदं अजिथं जिअमोहं॥धुय सब किलेसं, पय पण मामि ॥ नंदिअयं ॥ए॥ थुयवंदिअस्सा रिसिगण देवगणेहिं, तो देववहूहिं पयर्ड पण मिअस्सा ॥ जस्स जगुत्तम सासणयस्सा, नत्तिवसागय पिमित्र याहिं देववरवरसा बहुश्राहिं सुरवर रश्गुण
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