SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७४) धणवर नरवर थुय महिअच्चिअं बहुसो ॥ अरु ग्गय सरय दिवायर समहिथ सप्पन्नं तवसा ॥ गयणं गण वियरण समुश्य चारण वंदिरं सिर सा ॥ किसलयमाला ॥ १७ ॥ असुर गरुल परिवंदि अं, किन्नरोरग णमंसियं ॥ देवकोडी सय संथुरं, समणसंघ परिवंदिरं ॥ सुमुहं ॥२॥ अनयं अणहं अरयं अरुधे,अजिअं अजिअं पय पणमे ॥ विजा विल सि ॥१॥ आगया वर विमाण, दिव कण ग रह तुरय पहकर सएहिं हुलियं ॥ ससंनमो अरण, स्कुनिय बुलिय चलकुंमलं गयतिरीडसो हंत मनलिमाला ॥ वे ॥॥ जं सुरसंघा सा सुरसंघा, वेर विउत्ता नत्ति सुजुत्ता ॥ आयर नूसिथ संजम पिंमिश्र, सुछ सुविम्हि सब बलो घा ॥ उत्तम कंचण रयण परूविश्र, नासुर नूसण जासुरिभंगा ॥ गायसमोणय नत्ति वसागय, पं जलि पेसिथ सीस पणामा ॥ रयणमाला ॥२३॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेवय पुणो पया हिणं ॥ पण मिऊण य जिणं सुरासुरा, पमु श्या सजवणारं तो गया ॥ खित्तयं ॥ २४ ॥ तं महामुणि महंपि पंजली, राग दोस जय मोह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy