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(१४४) रुं जूहार ॥ १॥ नागकुमारमाहे कह्या, तिहां ला ख चोराशी ॥ एता जिनहर तिहां नर्मु, थालं,सम कित वासी ॥२॥ सोवन कुमार मद्य लाख, ब हुँतेर प्रासाद ॥ बन्नु लाख वायु मद्य, सुणिये सुर नाद ॥३॥ दीपकुमार दिशाकुमार, वली उदधि कुमार ॥ विद्युत स्तनित कुमार अने, वली अग्नि कुमार ॥४॥ए गए स्थानक जाणिये, प्रत्येकें जिनहर ॥ बहुंतेर उहुँतेर लाख तिहां, नवित्रण जिन सुखकर ॥५॥ एवंकारें सवि मली, बलुतेर ति हां लाख ॥ सात कोडी जिनहर नमुं, श्रीजि नवर लांख ॥ ६॥ लाख सात निव्यासी कोडी, अने तेरशें कोडी ॥ जिनपडिमा श्रीजिन तणी, वंदू बे कर जोडी ॥७॥ असंख्या व्यंतर जो सी, असंख्या जिनहर ॥ असंख्य पडिमा जिन तणी, नमिय नहिं उर्गति मर ॥ ॥ वाचकमू ला कहे देव, देउ सुमति सदा मुक ॥ जिनव चनें हुं लीन थर, गाउं जिनजी तुज ॥ ए॥
॥ ढाल बही॥ ॥ सोहम ईशान सनत कुमार ए, माहिद बं नरे लांतक सार ए ॥Jटक ॥ सार सुक्र अने
नवर नांखलात कोडी लव मली, बहुत
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