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(१४५) सहसारह, थानत प्राणत श्रारण ॥ अच्चुत नवौवे यक त्रिक तिहां, पंच अनु त्तर तारणा अनुक्रमेंप्रा साद कहीयें, लाख सहस सत संखया ॥ बत्तीस अ छावीस बारह,अह चज लख अकया ॥१॥ पन्नास चालीस बसहस जिनहरा ॥ दोदो दोढज दोढज सतवरा ॥ त्रूटक ॥ वरा सत्तवर ग्यारोत्तर, सत्तो तरसो जाणीएं। एकशो उपर पंच अनुत्तर, अनुक्रमें वरवाणी ॥ सवे मली जिनहर सवे जिनहर लाख चोरासी साख ए॥ सहस सत्ता' आगला, तिहां वीशने त्रण दाख ए॥२॥ चाल ॥ एकसो कोमी रे, बावन कोडी ए ॥ लाख चोराणुं रे, संख्या जो डी ए ॥ त्रूटक ॥ जोडिएं चोशह सहस एकशो, चालीशै तिहां आगली ॥ जिनप्रासाद एकशो असि अ लेखें, वंदू प्रतिमा ऊजली ॥ चैत्यसंख्या ऊर्ध्व लोकें, वीरवचन विख्यात ए ॥ वाचक मूला कदे नणजो, स्तवन ए रप नात ए ॥३॥
॥ढाल सातमी ॥ ॥ वेयढ गिरि सिंतरसो जिनहर, वृषधरना तिहां त्रीश जी ॥ कुरुषुमना दश जिनहर बोल्या, गजदंतें तिहां वीश जी ॥१॥असिथ ते जिनहर
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