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( १४३ ) पोटिल सत्कीर्त्ति, मुनिसुव्रत मम निःकषाय ॥ निपुलायक निर्मम, चित्रगुप्ति वंदूं पाय ॥ २ ॥ स माधि सुसंवर, जशोधर विजय मल्ली देव ॥ अनंत वीरज जयकृत, तेड़नी कीजें सेव ॥ ३ ॥ अनागत जिनवर, दोशे तेनां नाम ॥ जणे वाचकमूला, तेने करूं प्रणाम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥
॥ महा विदेहें पंच मकार, प्रत्येकें जिन चार ॥ सीमंधर जुगमंधर, बाहु सुबाहु ा सुखकार ॥१॥ सुजात स्वयंप्रन स्वामी, उसजानन बेहुं नामी ॥ अनंतवीरज देव, सुरप्रभु करूं सेव ॥२॥ विशाल वज्रधर साहु, चंद्रानन चंद्रबाहु ॥ भुजंग ईश्वर गा जं, नेमी प्रभु चित्त ए लाई ॥ ३ ॥ वीरसेन म हाज वंदूं, देवजसा दीठे आनंदूं || अजितवी रिय वंदन, शाश्वता कृषना चंद्रानन ॥ ४ ॥ वई मान वारिषेण ईश, ए हुआ जिन चोवीश ॥ एवा बन्नु ए जिनवर, वाचकमूला कहे सुखकर ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥
॥ दवे पायायें लोक मद्य, जिहां मार ॥ लाख चोसह जिनजुवन अबे,
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असुर कुं तिहां क
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