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________________ ( ३६ ) उम्र दि सिप्पमाणाइकमे, अहो दि सिप्पमाणाइकमे, तिरियदि सिप्पमाणा इक्कमे खित्तवुड़ी, सयंतरद्धा, क र्ध्वदिशि, अधोदिशि, तिर्यग् दिशि :- विस्मृत करी स इसात्कारें गमनप्रमाण तो अतिक्रम कीधो होय, क्षेत्र वृद्धि: - एक पखा भूमिका उठी करी बीजी पखा वधारी होय, स्मृति अंतर्द्धानः- दिशिवततणुं प्रमाण करी विसाखुं होय, वड सफर कीधो होय, लोज लगें अतिविषम पंथ वाह्या होय ॥ छानेरुं ए बहा दिशित्रत विषे पक्ष दिवसमादे जिको कोइ सूक्ष्म, बादर, अतिचार दुवो होय, ते सवि हुं मनें, वचनें, कायायें करी मिष्ठा मि डुक्कर्ड ७ सातमुं जोगोपनोगत द्विविध. जोजनतः क मतश्च तत्र जोजनतः - इणे व्रतें “ पंचुंबरि महविग इ, हिम विस कर गेय सव्वमट्टी य ॥ राईजोय गं चिय, बहुबीयत संधाणं ॥ १ ॥ घोलवड वायंगण, अ मुयिनामा णि फुल्ल फलयाणि ॥ तुछफलं चलियरसं, वजय मुकाबावीसं ॥ २ ॥ ए बावीश अजक्ष्य ॥ "स वार्ड कंदजाई, सूरण कंदो य वक्कंदो य ॥ अद्द हबि द्दा यता, अहं तह अल कचूरो ॥ १ ॥ सतावरी वि राली, कुमारि तह थोहरी गलोई य ॥ ब्दसण वंस For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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