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________________ (१०३) व्याणकारणम् ॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनंजयति शा सनम् ॥१॥ इति श्रीपोरसि विधिः समाप्तः॥ पड़ी चार पहोरना चारे दिशियें एटले प्रत्येक पहोर आश्रयि अनुक्रमें पूर्व दि शिथी मामीने बार बार लोगस्सना कानस्सग्ग करवा. प्रमाद न कर वो, रात्रि श्राखी धर्म ध्यानमां काढवी. पळी प्र जातनुं पडिकमणुं करी सामायिक पालवाने ठे काणे पोसह पालवा त्रण नवकार गणुं जी. एम कही, त्रण नवकार गणी श्छाकारेण संदिसह जगवन् ! पोसह पारवा गाथा जणुंजी ? एम कही नीचें लख्या प्रमाणे गाथा कहियें, ते लखे . ॥अथ पोसह पारवानी गाथा ॥ ॥सागरचंदो कामो, चंदवमिंसो सुदंसणो ध नो ॥ जेसिं पोसह पडिमा, अखंमिश्र जीवियं ते वि ॥१॥ धन्ना सलाहणिया, सुलसा आणंद कामदेवा य ॥ जेसिं पसंसई नयवं, दसवयं त महा वीरो ॥२॥ पोसह सामाश्य सं,ठिययस्स जीव स्स जाइ जो कालो ॥ सो सफलो बोधवो, सेसो संसारफलहेऊ ॥३॥ पठी, जं जं मणेण बर्फ, जं जं वायाए नासियं पावं ॥ इत्यादिक सामायिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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