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________________ ( १७ ) णं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोचगाणं छ, सवन्नूणं सवदरिसिणं, सिव मयल मरुा मांस मरकय महाबाद मपुणरा वित्ती सिद्धिगई नामधेयं, वाणं संपत्ताणं नमो जिलाएं ॥ इति ॥ ए बहुं खमासमण. पढी इछामि खमासमणपूर्व कलाकारेण सं दिसह जगवन्! गुरुवंदना करुं जी. एम कही गुरुवंदना कहीयें. ॥ गुरुवंदना ॥ ॥ श्रासु दीव समुद्देसु, पनरससु कम्मभूमी सु ॥ जाति के वि साहू, रयहरण गुछ पडिग्गह धा रा ॥ १ ॥ पंचमहद्वय धारा, अढार सहस्स सीलंग धारा, अरकोहायारच रित्ता, ते सवे सिरसा मसा मण वंदामि ॥२॥ पुक सिरिअर किय, गुरुपो तप्प ट्टिय पुजा जयसिंहा ॥ सूरिसिरि धम्मघोसा, म हिंद सिंहा त गुरुणो ॥ ३ ॥ तप्पय सिरिसिंह पहा, तेसिं पा जयसिंह वरगुरुणो ॥ देविंद सिंहगुरुणो, तप्पय सिरिधम्मपद सूरि ॥४॥ सिरिसिंह तिलयसूरी, तप्पइ सिरिमं महिंद पद गुरुणो ॥ सिरिमेरुतुंग गुरुणो, तप्पय जय कित्ति गुरुराई ॥ २५ ॥ सिरिजयकेस रिसूरी, तप्पइ सि ऊंत सायरो सुगुरु ॥ सिरिजावसायर गुरु, तप्पय सूरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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