________________
( २० ) गुण निहाणो ॥ ६ ॥ सिरिधम्ममुत्तिसूरी, तप्पर कल्लाण सायर मुणिंदो ॥ सिरि अमर सार गुरु, कल्लाप कुण उ संघस्स ॥ ७ ॥ तप्पट्टि पुत्र पुवय, जाणु विज्ञाय सायरं सूरि ॥ सिरिउदय सायर सूरि, तप्पय गुणमणि रुहाणं ॥ ८ ॥ श्री कीर्त्तिसागर सूरि, श्री पुण्यसा गर सूरि, श्री राजेंद्रसागर सूरि, श्री मुक्तिसागर सूरियं वंदे, विहरमान श्री विवेकसागर सूरियं वंदे. चल गवनायकं वंदे, विधिपगठनायकं वंदे. पढे ले पाटें सुधर्मा स्वामी, बीजे पाटें जंबूखामी, त्रीजे पाटें प्रजवो खामी, चोथे पाटें सिनवसूरि, पांच मे पायें यशोभद्रसूरि, बडे पाटें संभूतिविजय सूरि, सातमे पाटें जडबाहु स्वामी, आठमे पायें थूलिन प्रखामी, एवा पाटान् पाट बेला श्री प्रसहनामा याचार्य याशे, तेने महारी एकशो ने आठ वार त्रि काल वंदना होजो ॥ इति ॥ ए सातमुं खमासमण.
पढी छामि खमासमण पूर्वक इछाकारेण संदि सह जगवन्! सझाय कहुं, सझाय सांजलुं जी. श्र ह्रीं नवकार कहीने सझाय कहेवी,
॥ अथ सझाय ॥
॥ अरिहंता मंगलं मुक्त, अरिहंता मुझ देवया ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org