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द्याय रे ॥ ते जणी अशन वसनादिका, आश्रय स र्व वाय रे ॥ सा० ॥ ७ ॥ जिन गुणस्तवन नि ज तत्त्वनें, जोश्वा करे विरोध रे ॥ देशना ज व्य प्रतिबोधवा, वायणा करण निजबोध रे ॥ सा० ॥ ८ ॥ नय गम जंग निदेपथी, स्वहित स्याद्वाद युत वाणी रे ॥ शोल दश चार गुणशुं मली, कढ़े अनुयोग सुपहा रे ॥ सा० ॥ ए ॥ सूत्र ने अर्थ अनुयोग ए, बीय निर्युक्ति संजुत्त रे ॥ तीय जा ष्ये नयें जावियो, मुनि वदे वचन एम तंत रे ॥ सा० ॥ १० ॥ ज्ञानसमूह समता नया, संवरी द याकार रे ॥ तत्त्व आनंद श्रखादता, वंदियें च रणगुण धार रे ॥ सा० ॥ ११ ॥ मोह उदयें मो ही जेहवा, शुद्ध निज साध्य लय लीन रे ॥ देवचंद्र तेह मुनि वं दियें, ज्ञान अमृतरस पीन रे ॥ सा० ॥ १२ ॥ ॥ अथ तृतीय एषणासमितिस्वाध्याय प्रारंजः ॥ ॥ कांकरीया मुनिवर ॥ धन्य० ॥ ए देशी ॥ समि ति तीसरी एषणा जी, पांच माहाव्रत मूल ॥ श्र नाहारी उत्सर्गनो जी, ए अपवादी अमूल ॥ १ ॥ मनमोहन मुनिवर, समिति सदा चित्त धार ॥ ए यांकणी ॥ चेतनता चेतन तथा जी, नवि परसंगी
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