SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) महिमा घो, राजा कुंज पिता जिन तणो ॥ प्रजा वती राणी तस्स माय, कलश लांबन प्रणमुं म सी पाय ॥ २१ ॥ श्री राजग्रही, राजश्री मित्र, पद मावती मातानो पुत्र ॥ मुनि सुव्रत लांबन काच बो प्रणमुं जावें जिन वीशमो ॥ २२ ॥ विप्रा रा णी राजा विजे, मथुरा नगरी रिपुजन श्रजे ॥ नी सोत्त पल लांबन श्रीचंग, नमि जिन प्रणमुं मनने रंग ||२३|| सूरिपुर स्वामी श्रीनेम, मुक्ति वधू जेणें परणी खेम ॥ समुद्र विजय शिवा देवी नंद, शं ख लांबन प्रणमुं श्रानंद ॥ २४ ॥ अश्वसेन वामा जस माय, वाण्यारसि नगरी लांबन नागराय ॥ वीशमो जिणेसर पास, प्रगट प्रजावें पूरे आश ॥ २५ ॥ श्री सिधारथ त्रिशला माय, कुंडल पुर लांबन मृगराय ॥ वर्द्धमान जिण चोवीश, मो, कर जोडीने जावें नमो ॥ २६ ॥ ए चोवीश जिनवर नां नाम, बोल्या सदा समरणने काम ॥ जवो जव देजो इहज देव, बोधबीज साची जिनसेव ॥ २७ ॥ झंडु बाण रसनेण प्रमाण, ए संवबर संख्या जाण ॥ तपग गयण विजासण जाण, श्री हेम विमल सूरि जुग प्रधान ॥ २८ ॥ पूज्य शिरो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy