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मणि पंकित राय, साधविजय गिरुवा गुण गाय ॥ कमल साधु जयवंत मुणींद, तास शिष्य पणे श्र ₫ 11 20 11 zfa 11
॥ अथ डुमपुष्पिकाध्ययन स्वाध्यायप्रारंभः ॥ ॥ धम्मो मंगलमुक्किहं, अहिंसा संजमो तवो ॥ देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ १ ॥ जहा मस्स पुप्फेसु, नमरो श्राविाइ रसं ॥ नय पुष्पं किलामेश, सोउ पीइ अप्पयं ॥ २ ॥ ए मे ए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो ॥ विहंग मा व पुप्फेसु, दानत्तेसणे रया ॥ ३ ॥ वयं च वि तिं लग्नामो, न कोइ उवहम्मर || अहागडेसु री यंते, पुप्फेसु नमरो जहा ॥ ४ ॥ महुकार समा बु झा, जे जवंति णि स्सिया || नाणापिंकरया दंता, ते वुच्चंति साहु | तिबेमि ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ उत्तराध्ययनस्वाध्याय प्रारंभः ॥ ॥ श्रसंखयं जी वियमापमायए, जरोविणीयस्स हि न िताणं ॥ एवं वियाणा हि जणे पमत्ते, कल्हं विहंसा अजया गर्हति ॥ १ ॥ जे पावकम्मे हिं ध ं मस्सा, समाययंति श्रमयं गहाय ॥ पहाय ते णं पासपयडीए नरे, वेराणुबद्धा नरयं उविंति ॥ २ ॥
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