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(१२) जी ॥ गु०॥६॥ खंति मुक्ति युक्ति अकिंचनी, शौच ब्रह्मधर धीरो जी ॥ विषय परिसह सैन्य वि दारवा, वीर परम शौंमीरो जी ॥ गु०॥ ७॥ कर्म पल दलदाय करवा रसी, आतमझकि समृको जी ॥ देवचंद जिन आणा पालतां, वंदूं गुरुगुण वृद्धो जी ॥ गु० ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥ अथ नवम साधुखरूप वर्णन सद्याय प्रारंजः ॥ __॥ रसियानी देशी ॥ धर्म धुरंधर मुनिवर सुल ही, नाण चरण संपन्न ॥ सुगुणनर ॥ इंडिय लोग तजी निज सुख नजी, जवचारक उदविन्न ॥ सु० ॥ध०॥॥ अव्य नाव साची सरधा धरी, परिहरी शंकादि दोष ॥ सु० ॥ कारण कारज साधन श्रा दरी, धरी ध्यान संतोष ॥ सु ॥ ध० ॥२॥ गुण पर्यायें वस्तु पारीखतां, शीख उनय नंमार ॥ सु० ॥ परिणति शक्ति स्वरूपमें परिणमी, करता तसु व्यवहार ॥ सु० ॥ ध० ॥३॥ लोक सन्नवि तिगिठा वारता, करता संयमवृषि॥ सु० ॥ मूल उत्तरगुण सर्व संजारता, धरता श्रातम शुद्धि ॥ सु० ॥ ध० ॥४॥ श्रुतधारी श्रुतधर निश्रारसी, वश कस्या त्रिक जोग ॥ सु ॥ अन्यासी अभिनव
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