SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१ ) वारण वरं, मुणि सुमणवण संग ॥५॥ धन्नोहं पुषो दं, सहलो मह एस माणुसो जम्मो ॥ जं जिण तु ह पयपंकय, पसाय पासायमनिरूढो ॥६॥ धन्नो एसो दिवसो, जाम मुहुत्तो वि एस सुपवित्तो ॥ जंमि तुमं तिजगगुरू, जव मरुपद सुरतरू पत्तो ॥ ७ ॥ श्रद्यं म द चिंतामणि, सुरतरु सुरगावि जद कुंजाई ॥ सयलं सुलहं जं पहु, अलपुवो तुमं लो ॥ ८ ॥ नरय जव तिरिय नर सुर, वर समुदय नमिय चलण कम लडुगं ॥ तिहु जण सुरतरु सम, महनिस मवि नमह तिजगपहुं ॥ ए ॥ श्र दस दोस रहिए, स हिए चउतीस सय वरेहिं ॥ हय कोहे कय सो हे, महापाडिहेरे हिं ॥ १० ॥ जियरांगे जियदो से, जियमो कम्म निम्मद ॥ सिवपुरपढ़ स बाहे, गयबाहे यो मिजिएनाहे ॥ ११ ॥ जरहं मिती जय काले, पढमं वंदामि केवल जिदं ॥ निवाणी जिण सायर, महाजसं चेव विमल जिणं ॥ १२ ॥ सव्वाणुनू 5 सिरिहर, दत्तं दामोयरं सुतेयं च ॥ सामि जिणं मुसुिवय, सुम सिवगइ तहबाहं ॥ १३ ॥ नमिमो नमीसर जिणं, निलं जसोहरं कय च ॥ धम्मी तर सुमई, सिवकर जिए संदण जिणंद ॥ १४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy