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(५०) नबणा जोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं, सब स माहिवत्तियागारेणं वोसिरामि. ॥ इति श्रीमद्विधिपदगल शृंगारपूज्य श्रीजयशेख रसूरिविरचिताःश्रावकस्य बृहदतिचाराः संपूर्णाः॥
पड़ी श्छामि खमासण पूर्वक हेग बेसीने श्लाका रेण संदिसह जगवन्! अष्टोत्तरी तीर्थमाला कहुं जी. एम कही नमो अरिहंताणं ॥ नो पाठ संपूर्ण कही ने पठी तीर्थमाला कहीये.
॥अथ श्री अष्टोत्तरीतीर्थमाला प्रारंजः ॥ ॥ अरिहंतं जगवंतं, सबन्दु सवदंसि तिचयरं ॥ सिहं बुद्धं निच्चं, परमपयलं जिणं थुणिमो॥१॥ज य जय तिहुअण मंगल, नद्यारय सामिसाल जय च त्त ॥देवादिदेव जगपहु, परमेसर परम कारुणिय ॥२॥ जय जय जगिकबंधव, नव जलहि दीव तिहुश्रण प श्व ॥ जय जय जग चिंतामणि, तिहुश्रण चूमामणि जिणंद ॥ ३ ॥ जय जय सिवपह संदण,असरण ज ण सरण दीण उमरण ॥ जय जय जव जय नंजण, जण रंजण बिन्नजरमरण ॥४॥ जय कम्मजलाहि तारण तरंग, गुण रयण धारण करंग॥जय विसमबा
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