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सुद ॥ १६ ॥ रहेतो इहां साधु गुणे उदास, रवि प्रजा तुल्य करे प्रकाश ॥ गृही जति दंसणाणं एक, क्रियाविशेष किरिया विवेक ॥ १७ ॥ त्रणे म ली एक थया जिवारें, धम्मछकामें ही जती तिवा रें ॥ श्री विश्वसेन. क्षितिपाल पुत्र, चरित्र बे तुम्ह घणां पवित्र ॥ १८ ॥ पारेवडुं राख्युंज प्राण आपी, सखीतचंदें स्थिर कीर्त्ति थापी ॥ गर्भस्थ हूई जग मांदे संती, तिणे करयुं सार्थक नाम शांति ॥ १९ ॥ यया केवली संयम शुद्ध पाली, त्रैलोक्यनी मारी तिवार टाली ॥ सुखी थया कर्म खपी जिनेंद्र, से वे सदा सिद्धपयस्थ इंद्र ॥ २० ॥ श्री शांतिनाथ प्रभु बो हमारा, में तो ग्रह्मां बे चरणो तमारां ॥ त्रैलोक्यनो पीहर विनवीजें, शांतिजी तुं सेवक सार कीजें ॥ २१ ॥ इति श्री शांतिजिन स्तवनं ॥
॥ अथ ॥
॥ खमत खामणानुं स्तवन ॥
|| देशी बखडांनी ॥ अरिहंत पद पहेलुं नमुं जी, गुण बे बार प्रमाण ॥ करो जवि खामणां जी ॥ उज्ज्वल ध्यानें ध्यायवा जी, पाम्यो केवल नाए ॥ ॥ करो० ॥ १ ॥ सिद्ध राता प्रणमुं सदा जी, कर्म
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