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(२०५) तषो कीधो नाश ॥ कम् ॥ श्रष्ट गुणें करी दीपता जी, जेहनो मुक्तिमा वास ॥ कण ॥२॥ उत्तीसय गुण राजिया जी, श्राचारज पीले रंग ॥ कम्॥नी लवर्ण पाठक नावियें जी, पंचविश गुण सुरंग ॥ ॥क० ॥३॥ मरकतवर्णे मुनिवरा जी, सत्त्या विश गुणगेह ॥ क० ॥ एकसो श्राप गुण मणि नूषिता जी, थारुं पंच पद एह ॥ क० ॥ ४॥ शिष्य साहु परिवारने जी, संयमवंत महंत ॥क ॥ श्रीसंघ सहुने खामणां जी, गिरुया जे गुणवंत ॥ करो ॥ ॥५॥ लाख चोराशी योनिना जी, जीव राशि जे होय ॥ क० ॥ जवोजव फरश्या प्रेमशुं जी, ते खामुं हुं त्रिलोय ॥ क० ॥६॥ पग लागी तुम प्र तिखमुंजी, तुमें पण खमजो मोय ॥ क० ॥ सर लपणुं जग दोहिलु जी, जेहथी पातक धोय ॥ का ॥७॥ क्रोध कियां दूषण पामी जी, क्रोधे नरक खहंत ॥का सूक्ष्म निगोदजमां रहे जी, रीषे काल अनंत ॥ क० ॥ ॥क्रोध कदाग्रह परिहरो जी, फल जे जेहनां पुष्ट ॥ क० ॥ चारित्र नासे क्रोधथी जी, समकित आपे पूंठ ॥ कण ॥ ए ॥ वैर विरोध सवि बांमिने जी, मनमें धरो वैराग ॥ कण॥ शांति
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