SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६६) ध्यां सवे, जीडनंजन प्रजु जेह कहायो ॥ पंच॥ ५॥ वीर महावीर सर्व वीर शिरोमणि, रणवटा मो ह जट मान मोडी ॥ मुक्तिगढ वासियो जगत उ पासीयो, नाथ नित्य वंदियें हाथ जोडी ॥ पंच०॥ ६॥ मातने तात अवदात जिन देवनां, गामने गो त्र प्रजुनाम सुणतां ॥ उदय वाचक वदे उदयपद पामिये, नावे नगवंतनां स्तवन जणतां ॥ पंच० ॥ ७॥ इति पांच परमेश्वरस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ प्रजाती॥ ॥ राग रामकली ॥ तेरो दरस नवें पायो रुष नजी, में तेरो दरस जलें पायो ॥ काल अनंतें मे लायो ॥ २० ॥ १॥ जिनपति नरपति मुनिपति प हेलो, एसो बिरुद धरायो ॥ मानुतुं णे मसिया अवतारें, जगत उझारण आयो ॥ २० ॥२॥ तें प्रजु जुगकी याद निवारी; सब व्यवहार शिखायो॥ लिखन शील्प शतगनित पढायो, ताथें जगत चला यो ॥ २० ॥३॥या जगमें तुम सम नहिं रें, अवस रपनियें कहायो॥अढार कोडाकोडी सागर अंतें, ते प्रजु धर्म दिखायो॥॥॥ लाख पंचाशत कोडि सा गरलों, सुखकर शासन गयो ॥ तुज रत्ना कर वं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy