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________________ ( १६५ ) नवाणुं समोसख्या, स्वामी कृषन जिणंदा ॥ पांच पांव मुगतें गया, पाम्या परमाणंदा ॥ श्री० ॥४॥ पूरव पुण्य पसाउलें, पुंमरिक गिरि पायो ॥ कांति विजय हरखें करी, विमलाचल गायो ॥ श्री० ॥ ५ ॥ इति श्री सिद्धा चलस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पांच परमेश्वरस्तवन प्रारंजः ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ पंच परमेश्वरा परम अलवेश्व रा, विश्ववालेश्वरा विश्वव्यापी ॥ नक्तवत्सल प्रभु जक्तजन उद्धरी, मुक्तिपद जे दिये कर्म कापी ॥ पं च० ॥ १ ॥ वृषन अंकित प्रभु वृषन जिन वंदियें, नानि मरुदेवीनो नंद नीको ॥ जरतने ब्राह्मीनो तात जुवनंतरे, मोह मद गंजणो मुक्ति टीको ॥ पंच० ॥ २ ॥ शांतिपद श्रपवा शांति पदथापवा, अद्भुतकांति प्रभु शांति साचो ॥ मृगांकपारापति सैन्यथी उद्धरी, जगपति जे थयो जगत जाचो ॥ पंच० ॥ ३ ॥ नेमि बावीशमो शंखलांबन नमो, समुद्र विजयांगजो नंग जीती ॥ राजकन्या तजी साधु मारग जजी, जीत जेणें करी जग वदिती ॥ ४ ॥ पार्श्वजिनराज श्रश्वसेनकुल उपना, जननी वा मा तो जेह जायो ॥ श्राजे खेटकपुरें काज सा For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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