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________________ ( १६७ ) शविभूषण, एसो कोन सुणायो ॥ ० ॥ ५ ॥ क रुणाकर ठाकोर तुं मेरो, हुं तुझ चरणे आयो ॥ द्योप द सेवा अमृतमेवा, इतनेमें नवनिध पायो ॥३०॥६॥ ॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजिनस्तवनं ॥ ॥ प्रजाती ॥ कडखो ॥ पास शंखेश्वरा सार कर सेवका, देव! कां एवडी वार लागे ॥ कोडी कर जो डी दरबार आगे खडा, ठाकुरा ! चाकरा मान मा गे ॥ पा० ॥ १ ॥ जगतमां तुं जगदीशज ॥ जागतो एम शुं आज जिनराज उंधे ॥ महोटा दानेश्वरी तेहनें दाखियें, दान दिये जग काल मूधे ॥ पा० ॥ २ ॥ जीड पडि जादवा जोर लागी जरा, ति समे त्रिकमे तुंज संभारयो ॥ प्रगटी पातालयी पलकमां तें प्रभु, जक्तजनतणोजय निवारयो ॥ पा० ॥ ३ ॥ प्रगट था पासजी मेल पडदो परो मोड सुराने आप बेडो ॥ मुऊ महिराण मंजूसमां पेसीने, खलकना नाथजी ! बंध खोलो ॥ पा० ॥ ४ ॥ आदि अनादि अरिहंत तुं एक बो, दीनदया ल बो, कोण दूजो; ॥ उदयरत्न कहे असुरनुं शुंग जुं, मान जो रेख महाराज पूजो ||पा॥५॥ इति ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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