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________________ (२०१) बगस बगस मा बाप ॥ कृ० ॥ २६ ॥ मुफ आधार बे एटलो जी, सर्दहणा ने शुरू ॥ जिनधर्म मीगे मन गमे जी, जिम साकरशुं दूध ॥ कृ० ॥२७॥ षन देव तुं राजियो जी, शत्रुजय गिरि शणगार ॥ पाप अलोयां में आपणां जी, कर प्रनु मोरी सार ॥ कृ० ॥ २ ॥ मर्म एह जिनधर्मनो जी, पा पालोयां जाय ॥ मनशुद्ध मिठा मि मुक्कडं जी, देतां पुरित पलाय ॥ कृ० ॥ श्ए ॥ तुं गति तुं म ति तुम धणी जी, तुं साहिब तुं देव ॥ श्राणा धरूं शिर ताहरी जी, जव नव मामु तोरी सेव॥कृ॥३० ॥ कलश ॥ ॥ एम चढिय शत्रुजय,चरण नेट्यां, नाजिनंदन, जिनतणां ॥ कर जोडी आदि, जिने आगे, पाप आलोयां, आपणां ॥ श्रीपूज्य जिनचंद, सूरि सा रु, प्रथम शिष्य, सुजस घणे॥गणि सकल चंद सु, शिष्य वाचक, समय सुंदर, गुण थुणे ॥३१॥ इति॥ ॥अथ ॥ ॥ श्री शांतिजिन स्तवन प्रारंजः ॥ ॥ जिनेंड शांतीश्वर पाय लागुं, तुम्हो कने शु कज तत्त्व मागुं । नेव्यो घणे कालेहि कल्प साल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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