SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२४) ना, न दुवे संयमधर्म ॥सु॥ ते शाने जूते उच्चरे, जे जाणे प्रवचनमर्म ॥ सु० ॥ ध० ॥ १३ ॥ जस साने निजसंस्मृत थायवा, परजन रंजन काज ॥ सु० ॥ ज्ञान क्रिया अव्यत विधि साचवे, तेह नहिं मुनिराज ॥ सु० ॥ ध० ॥ १४ ॥ बाह्यदया एकांतें उपदिसे, श्रुतधाम्नाय विहीन ॥ सु० ॥ बगपरें उग ता मूरख लोकने, बहु जमशे तेह दीन ॥ सु०॥ ध० ॥ १५ ॥ अध्यातम परिणति साधन ग्रही, उ चित वहे आचार ॥ सु० ॥ जिनआणा अविरा धक पुरुष जे, धन्य तेहनो अवतार ॥ सु० ॥ध ॥ १६ ॥ अव्य क्रियामां नैमित्तिक हेतु बे, नावधर्म लय लीन॥सुनैरुपाधिक तोजे निज अंशनी, माने लाज नवीन ॥ सु० ॥ ध ॥ १७ ॥ परिणति दोष जणी जे निंदता, कहेता परिणतिधर्म ॥सु॥ योग ग्रंथना नावप्रकाशता, तेह विदारे हो कर्म ॥ सु ॥ धन ॥ १० ॥ अल्पक्रिया पण उपकारीपणे, ज्ञानी साधे हो सिफ॥ सु० ॥ देवचंड सुविहित मुनिवृंदने, प्रणम्यां सयल समृद्धि ॥ सु॥ध॥१ए॥ ॥कलश ॥ ॥ राग धन्याश्री॥ते तरिया रे जाते तरिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy