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(६) सोलसम जिण तिजणमह सुविणयं ॥४॥ पवर देसणय तिहुअण वि पडिबोहियं, नवोवग्गाहि क म्माश् मसमूरिझं ॥ पवर सुद परम निवाण पु रिजे गया, हठ ते नमह जिण अजिथ संती सया ॥५॥ कुवित्र रिउवग्ग हरि सरह गय जोश्णी, नूय वेयाल अहि रकसी मायणी ॥ तासु उवस ग्ग कीरे नासेसयं, हियश् जो एहु समरेश जिण जुअलयं ॥६॥ ज न अहिलसह दालिद्द दोह ग्गयं, तुम्ह अहिलसह जश् लछि सोहग्गयं ॥ न वह जश् नीष जश् सिवसुहा सत्तया, हवह एय स्स जिणगश् तो नत्तया ॥ ७॥ एय संवरिय पकिय चउम्मासिए, अजिथ संतिबयं जण जो निसुण ॥ कहर कविवीर गणि नविथ जण श्र ग्गए, असुह तसु जाश् सुइ सयल संपजाए॥॥इति श्रीवीरगणिकृत लघु अजितशांतिस्तवनं सं० ॥७॥
॥अथ बृहद जितशांतिस्तवन प्रारंजः॥ ॥ सकल सुखनिवहदानाय सुरपादपं, पादपंकज नतानेकनाकाधिपम् ॥ श्रचल शिवनिलयमप्रलयगुण शोनितं, नौमि जिनमजितमहमजितमुदितोदितम् ॥१॥ शांतिमुपशांतनवजूरिजयपरिजवं, जुवनव
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