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(५) चक्कवट्टीणं ॥ ६॥ अप्पडिहय वरनाण दंसणधराणं विअबउमाणं ॥ ॥ जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं ॥७॥ सवन्नृणं सव्वदरिसिणं सिवमयल मरुथ म पंत मलय मवाबाह मपुणरावित्ति, सिडिगश्नाम घेयं गणं संपत्ताणं ॥ ए॥ णमो जिणाणं ॥ इति शक्रस्तवन नामा सप्तमस्मरणम् ॥७॥
॥ अथ लघुअजितशांतिस्तवन प्रारंजः॥ ॥ गपशवयार सोहम्म सुर सामी, जणणि जे य संथुण नत्तिनर नावि ॥ ति जिण इकागकु रु वंस नूसण धरा, अजिअ संती नंदंतु मंगल करा ॥१॥ जम्मकालंमि जे असुर सुरजासुरे, न्ह विय बत्तीस इंदेहिं सुर गिरिसिरे ॥ खयर नर अमर आणंद वझारया, जयउ जगि अजिथ संतीय नहारया ॥२॥ खविय रिउवग्गवर रज सुह माणिजं, पवरदाणेण जगसयल सम्माणिजं ॥ जेहिं मुकंकरी दिक कंखी रया, ताहि थुणि अ जिअ संतीय पय पंकया ॥३॥ घोर तवचरण वसग्ग अहियासिजं, उजाय घार कम्माई निन्ना सिजं ॥ जेहिं नाणं समुप्पा डिझं विमलयं, उश्य
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