________________
(४०) व्यतणी सार संजाल कीधी न होय ॥अनेरुं ए झा नाचार विषे पद दिवसमांहे जिको कोई सूक्ष्म, बा दर, अतिचार हुवो होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि मुक्कडं.
२ तथा दर्शनाचारें सम्यक्त्व विराधिलं होय, दे व गुरु नमस्कार कस्या पाखें जोजन की, होय, देव पूजतां धोती शुद्ध कीधी न होय, मुखकोश कीधो न होय, आधडविचें देव पूज्या होय, गुरुने श्रास णे, बेसणे, उपगरणे, पग लगाइयो होय, गुरुवचन वेषलगें वायु होय, बिंब हाथथकी विबूटयु होय, बिंबनुं वैयावच्च कीधुं न होय, देवव्य श्रापणे व्य वसायें घात्यु होय, देवप्रव्य विणसतुं उवेख्यु होय, अनेरुंए दर्शनाचारविषे पद,दिवस मांहे जिको कोश सूक्ष्म, बादर, अतिचार दुवो होय ते सवि हुँ मनें, वचनें, कायायें करी मिना मि उक्कडं. ___३ तपाचारें बती शक्ते पच्चरकाण कीधुं न होय, करीने नांग्युं होय, पञ्चरकाण पाट्युन होय, नियम अनिग्रह लेईनांग्या होय,उन्नेदअन्यंतर,उन्नेद बाह्य तप अवसरें साचव्युं न होय ॥ अनेरु ए तपाचार विषे पद दिवसमांहे जिको कोश् सूक्ष्म,बादर, श्रति
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org