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________________ (ए) यिक गवा त्रण नवकार गणुं. एम कही त्रण न वकार गणवा. पडी जीवराशि खमावी, अढारपा पस्थानक आलोववां. पठी गुरुस्थापना कहेवी. प बी अव्य, देत्र, काल, नाव धारवा. पडी पोसह उच्चा र करवा एक नवकारनो काउस्सग्ग करवो. प बी श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! पोसह उच्चार करावो जी. एम कही गुरु मुखें पोसह उच्चार क रवो. गुरुनो योग न होय तो देवगुरुनी साखें पोताने मुखें पोसह उच्चार करवो, तेनो पाठ ल खीयें बैयें. ॥अथ पोसह उच्चार करवानो ॥ ॥ करेमि नं ते पोसहं सब श्राहारपोसहं स वर्ड सरीरसक्कारपोसहं सवर्ड बंजचेर पोसहं सवर्ड श्रवावारपोसहं सब चउविद पोसहं गएमि जा व दिवसं जाव अहोरत्तं जाव रत्तं पडवासामि मुवि हं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न का रवेमि तस्स नंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ इति ॥ ____ए रीतें पोसह उच्चार करवो, पढी सामायिक उ चार करवा एक नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पड़ी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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