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(७७) विजलं ॥ गाहा ॥ ३५ ॥ तं बहुगुणप्पसायं, मुक सुदेण परमेण अविसायं ॥ नासेउ मे विसायं, कु ण अपरिसावि श्र पसायं ॥ गाहा ॥३६ ॥ तं मोएउ अ नंदि, पावेज अ नंदिसेणमनिनंदि ॥ परिसा वि सुहनंदि, मम य दिसन संजमे नंदि॥ गाहा ॥३७॥ परिका चाउम्मासे, संवछरीए श्र वस्स नणिअहो ॥ सोयबो सोहिं, उवसग्ग निवा रणो एसो ॥ गाहा ॥ ३० ॥ जो पढ जो अनि सुण, उन कालंपि अजिअसंति थयं ॥ न हु हुँति तस्स रोगा, पुबुप्पन्ना विनासंति ॥ गाहा ॥ ३ए ॥ ववगय कलि कबुसाणं, ववगय निकंतराग दोसाणं ॥ ववगय पुणनवाणं, नमोनु देवादिदेवा एं ॥ ४० ॥ सवं पसमझ पावं, पुन्नं वर नमसमा एस्स ॥ संपुन्न चंद वयण, स्स कित्तणं अजिअसं तिस्स ॥४१॥ जश् वह परमपयं, अहवा कित्ति सुविबडं जुवणे ॥ ता तिअलोगुकरणे, जिणवयणे थायरं कुणह ॥४२॥
॥श्लोक ॥ ॥ सर्व मंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् ॥प्र धानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५३ ॥
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