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________________ (3) उपसर्गाः दयं यांति, विद्यते विघ्नवलयः॥ मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ ४४ ॥ श्रार्या वृत्तं ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता नवंतु जूतगणाः ॥ दोषाःप्रयांतु नाशं, सर्वत्र सुखी नवतु लोकः ॥ ४५ ॥ स्मरणं यस्य सत्त्वानां, तीव्रतापोपशां तये ॥ उत्कृष्टगुणरूपाय, तस्मै श्रीशांतये नमः ॥४६॥ इतिश्रीनंदिषेणसूरि विरचित अजितशांति स्तवनं द्वितीयस्मरणं संपूर्णम् ॥२॥ ॥ अथ वीरस्तवतृतीयस्मरणप्रारंजः ॥ ॥जयश् नव नलिण कुवलय, विअसिथ सय वत्त पत्तल दलबो ॥ वीरो गयंद मयगल, सुललि अ गइ विकमो नयवं ॥१॥ अज्जवि वहश् सु तिबं, अखंमिश्र जस्स नरहवासंमि ॥ सो वक माण सामी, तिअलुक दिवायरो जय ॥२॥ गा हाजुअलेण जिणं, मय मोह विवजिथं जिथ क सायं ॥ थोसामि ति संजागं तं निस्संगं महावी रं ॥३॥ सुकुमाल धीर सोमा, रत्त किसण पंकु रा सिरि निकेया ॥ सीधे कुस गहनीरू, जल थल नह मंगणा तिन्नी ॥४॥ न चयंति वीरलीलां, हाचं जे सुरहिमत्त पडिपुन्ना ॥ पंकय गयंद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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