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चंदा, लोण चक्क म्मिय मुहाणं ॥ ५ ॥ एवं वी रजि शिंदो, र गण संघ संधु जयवं ॥ पालि तय मय महिd, दिसउ खयं सब दुरियां ॥६॥ श्रीपादलिप्तसूरिविरचितवीरस्तवनं तृतीय
इति
स्मरणं संपूर्णम् ॥ ३ ॥
॥ अथ उपसर्ग हरस्तोत्र चतुर्थस्मरण प्रारंभः ॥
॥ उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म घण मुक्कं ॥ विसदर विस निन्नासं, मंगल कल्ला आ वासं ॥ १ ॥ विसहर फुलिंगमंतं, कंठे धारे जो सया मणु ॥ तस्स ग्गढ़ रोग मारी, कुछ ज राजंति उवसामं ॥ २ ॥ चिह्न दूरे मंतो, तु ऊ पणामोवि बहुफलो होइ ॥ नर तिरिएसु वि जीवा, पावंति न डुकदोहग्गं ॥ ३ ॥ तुह स म्मते ल, चिंतामणि कप्पपाय वनहिए ॥ पावंति
विग्घेणं, जीवा यरामरं ठाणं ॥ ४ ॥ इा सं थु महायस, जत्तिनर निप्ररेण हिश्रएण ॥ ता दे वदिऊ बोहिं, नवे नवे पास जिचंद ॥ ५ ॥ इतिश्री मद्रबाहुखा मिविरचित उपसर्गहरस्तोत्र च तुर्थस्मरणं संपूर्णम् ॥ ४ ॥
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