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________________ ( १५३) इयें || निज शुद्ध सत्ता साधनारथ, परम ज्योतिने पाइयें ॥ ७ ॥ जितमोह कोह विछोह निद्रा, परम पद स्थित जयकरम् ॥ गिरिराज सेवा करण तत्पर, प द्मविजय सुहितकरं ॥ ८ ॥ इति चैत्यवंदनं समाप्तं ॥ ॥ अथचैत्यवंदन प्रारंभः ॥ ॥ आदि देवारिहंत नमुं, समरुं तारुं नाम ॥ ज्यां ज्यां प्रतिमा जिन तणी, त्यां त्यां करूं प्रणाम ॥ १ ॥ शत्रुंजे श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार ॥ तारंगे श्रीजितनाथ, श्राबू रुषग जूहार ॥ २ ॥ अष्टापद गिरिपरें, जिन चोवीशे जोय ॥ मणिम य मूरति मानशुं, जरतें जरावी सोय ॥ ३॥ समेत शिखर तीरथ वहूं, जिहां वीशे जिन पाय ॥ वैजा रक गिरि ऊपरें, श्री वीर जिनैश्वरराय ॥ ४ ॥ मांगव गढनो राजियो, नामें देवसुपास ॥ षन कहे जि न समरतां, पहोंचे मननी यश ॥ ५ ॥ ॥ r चैत्यवंदन प्रारंभः ॥ ॥ सुर किन्नरनागनरिंदनतं, प्रणमामि युगादिम जिनमजितं ॥ संजवम जिनंदनमथ सुमतिं, पद्मप्र नमुज्ज्वलधीरमतिं ॥ १ ॥ वंदे च सुपार्श्व जिनेंद्र महं, चंद्रप्रनमष्टकुकर्मदहं ॥ सुविधिप्रभुशीतल जि For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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