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मणेणं, वायाए, कारणं न करेमि, नकारवेमि तस्स नंते पडिकमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वो सिरामि. ए बीजुं खमासमण. ए सामायिक करतां चारित्राचार शुरु थाय, एटले पहेलु सामायिका वश्यक पूरुं थयु.
॥ पड़ी श्वामि खमासमण पूर्वक श्वाकारेण संदि सह नगवन् ! बीजा आवश्यक जणी रियाव हियं पडिकमुं जी. एम कही इरियावहि पडिकमी, पड़ी तस्स उत्तरी कहेवी. पठी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी, लोगस्स प्रगट कहेवो, लोगस्स कहेतां दर्श नाचार निर्मल थाय. ए बीजु आवश्यक अनेत्रीजुं खमासमण थयु. पड़ी श्वामि खमासमण पूर्वक हे ग बेसीने श्वाकारेण संदिसह जगवन् ! बेडानुं पडिलेहण करुं जी. एम कही उत्तरासंगना बेडानुंप डिहण करवू. पड़ी श्छामि खमासमणपूर्वक श्छा कारेण संदिसह जगवन्! त्रीजा आवश्यक जणी श्रावश्यक वांदणां करुं जी.
॥अथ श्रावश्यक वांदणां ॥ ॥ श्वामि खमासमणो वंदिलं, जावणिजाए, निसी हिथाए, अणुजाणह, मे मिउग्गरं, निसी
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