________________ (207) खे जेटलो मनमांहे, तेटलो धर्म तेहनो जाय अणखाम्योजू श्रागो रहे, कर्म योगें ते अलि फुःख सहे॥१०॥ मक्ति तणो जो ने अजिलाष पारका बोल खमो तुमें लाख // कुगति थको जो ने उनगो, अंतरंग उपशम करो सगो // 11 // दमा एक जो जीवज धरे, तो वहेलो मुक्ति श्रद तरे // विजयन कवियण उच्चरे, गर्जावास ते न हिं अवतरे // 12 // इति दमासद्याय संपूर्ण // Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org