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________________ (७१) ॥३॥ अजियजिण सुहपवत्तणं, तव पुरिसुत्तम नाम कित्तणं ॥ तह य धिश्मश्प्पवत्तणं, तवय जि णुत्तम संति कित्तणं ॥ मागहिया ॥४॥ किरिया विहि संचित्र, कम्म किलेस विमुकयरं ॥ अजि यं निचियं च, गुणे हिं महामुणि सिफिगयं ॥ श्र जिअस्सय संति, महा मुणिणोविश्र संतिकरं ॥ सय यं मम निवुश् कारणयं च नमंसणयं ॥ आलिंग णयं ॥ ५॥ पुरिसा जश् पुरक वारणं, जश्व वि मग्गह सुककारणं ॥ अजिअं संतिं च नाव, अजयकरे सरणं पवाद ॥ मागहिया ॥६॥ अर र तिमिर विरहिय मुवरय जरमरणं, सु र असुर गरुल जयगवर, पयय पणिवश्यं ॥ अ जिअ महम विय सुनयनयनिजणमजयकरं ॥ सर ण मुवसरिश्र, जुवि दिविज महियं सयय मुव णमे ॥ संगययं ॥ ७॥ तं च जिणुत्तम मुत्तम नित्त म सत्तधरं, अजव मद्दव खंति विमुत्ति समाहि निहिं ॥ संतिकरं पणमामि दमुत्तम तिबयरं, संति मुणी मम संति समाहिवरं दिस ॥सोवाणयं॥ G॥ सावनि पुवपबिवं च, वर हदि मबय पसबवि बिन्न संथिकं ॥ थिरसरिछ वठं मयगल लीलाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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