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(७०) यरियाणं, अंगरदातिशायिनी ॥ ॐ नमो उवद्या याणं, आयुधं हस्तयोईढम् ॥ ३॥ ॐ नमो लोए सवसाहूणं, मोचके पादयोः शुन्ने ॥ एसो पंच न मुक्कारो, शिलावनमयीतले ॥४॥ सवपावप्पणा सणो, वप्रोवनमयोबहिः॥ मंगलाणं च सवेसिं, खादिरांगार खातिका ॥ ५॥ स्वाहांतं च पदं ज्ञेयं, पढम होइ मंगलम् ॥ वनोपरि वज्रमयं,पिधानं दे हरदणे ॥६॥ महाप्रनावा रदेयं, तुस्रोपवना शिनी ॥ परमेष्ठिपदोभूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रहां, परमष्ठिपदैः सदा ॥ त स्य न स्यानयं व्याधि, राधिश्चापि कदाचन ॥७॥ इति बृहन्नमस्कारः प्रथमस्मरणम् ॥ १॥
॥ अथ अजित शांतिस्तव द्वितीय प्रारंजः ॥
॥ अजिथं जिथ सबनवं, संतिं च पसंत सब गयपावं ॥ जय गुरुसंति गुणकरे, दोवि जिणवरे पणिवयामि ॥ गाहा ॥१॥ ववगय मंगुलजावे, तेहं विजल तव निम्मलसहावे ॥ निरुवम महप्प जावे, थोसामि सुदिछ सतावे ॥ गाहा ॥ ॥२॥ सबक प्पसंतीणं, सबपाव प्पसंतिणं ॥ सया अ जिय संतीणं, नमो अजिय संतिणं ॥ सिलोगो
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