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________________ (६५) एम सजाय बे कही रह्या पड़ी पांचमा श्रा वश्यक नणी दैवसिक प्रायश्चित्त विशोधनार्थं क रेमि काउस्सग्गं. एम कही अन्नब॥ कहीने चा र लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. ते करी नमो अरि हंताणं ए एक पद कही, काउस्सग्ग पारीने एक लोगस्स प्रगट कही पड़ी श्छाकारेण संदिसह न गवन् ! अनिनव काउस्सग्ग गलं. एम कही छ श्रनिनव असेस कम्मरकय, पुरकरकय निमित्तंक रेमि काउस्सग्गं अन्न ॥ कही पांच लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. पठी नमो अरिहंताणं ए एक पद कही, काउस्सग्ग पारी प्रगट लोगस्स कही, पली श्वाकारेण संदिसह जगवन् ! अजितशांति स्तवन कहुं. एम कही पली बृहन्नमस्कारादिक जू दां जूदां नव स्मरण कहेवां, ते लखिये वैयें. ॥ तत्र प्रथम बृहन्नमस्कार प्रारंजः॥ ॥अनुष्टुब् वृत्तम् ॥ ॥ परमेष्ठिनमस्कारं,सारं नवपदात्मकम् ॥ श्रात्म रक्षाकरं वज्र, पंजरानं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् ॥ ॐ नमो सिझाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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