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(७२) माण वर गंधहानि पहाण पनि ॥ संथवारि हबिहबबाहुं धंतकणगरुअगनिरुवहय पिंजरं, पर्व रखकणोवचियसोम चारु रूवं ॥ सुश्सुहमणानि राम परम रमणिऊ वर देवउंहि निनाय महुर यरसुहगिरं ॥ वेळ ॥ ए ॥ अजिथं जियारि गणं, जिथ सब जयं जवोहरिलं ॥ पणमामि अहं पयां, पावं पसमेत मे जयवं ॥ रासाबुझ ॥ यु ग्मं ॥ १० ॥ कुरु जणवय हबिणाजर, नरीसरो पढ म त महाचकवहि जोए ॥ महप्पनावो जो बा वत्तरि पुरवर सहस्स वरनगर निगमजणवयवश्, बत्तीसा रायवरसहसाणुायमग्गो ॥ चउदस वरर यण नव महानिहि चउसहि सहस्स पवरजुवईण सुंदरवई, चुलसी हय गय रह सय सहस्ससामी, बन्न वश् गाम कोडीसामी श्रासिज्जो नारहम्मि नय वं ॥ वेडल ॥ ११॥ तं संतिं संतिकरं, संतिमं स वजयासंतिं थुणामि जिणं, संति वेहेत्रं मे ॥ज यवं ॥ रासानंदियं ॥ युग्मं ॥ १५ ॥ श्काग वि देह नरीसर, नरवसहा मुणि वसहा ॥ नवसारय ससि सकलाणण, विगयतमा विहुयरया ॥ अजिउ त्तम तेश्र गुणेहिं महामुणि अमिश्र बला विउल
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