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________________ ( १३५) ढि थाज, सुरतरु सारे वंडित काज, कामकुंन स वि वस दुश्रा ए ॥ कामगवी पूरे मनकामिय, अष्ट महासिजि श्रावे धामिय, सामी गोयम अणुसरो ए ॥५६॥ पणवकर पहेलो पजणीजें, मायाबीज श्र वण निसुणीजें, श्रीमती शोना संजवे ए॥ देवहधु रि अरिहंत नमीजें, विनयपह उवप्नाय थुणीजें, ण मंत्र गोयम नमो ए ॥ ५७ ॥ पुर पुर वसतां कां करीजें, देश देशांतर कांश नमीजें, कवण काज श्रायास करो ॥ प्रह ऊठी गोयम समरीजें, काज समग्रह (सुमंगल ) ततखण सीके, नवनिधि विलसे तास घरे ॥५॥ चउदह सय बारोत्तर वरसें, गोयम गणहर केवल दिवसें, “ खंन नयर सिरि पास पसा यें” कियुं कवित उपगार करो ॥ आदें मंगल ए ह पजणीजें, पर्वमहोत्सव पहिलो कीजें, कि वृद्धि कहाण करो॥॥धन्य माता जिणे उयरें धरिया, धन्य पिता जिण कुल अवतरिया, धन्य सहगुरु जिणे दिकिया ए॥विनयवंत विद्यानंमार, जस गुण पुहवी न लाने पार, वड जिम शाखा विस्तरो ए॥६॥गौतम स्वामीनो रास नणीजें, चजबिह संघ रसियायत की जे, सकल संघ आणंद करो ॥ कुंकुम चंदन बडो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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