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________________ ( १३६ ) दवरावा, माणक मोतीना चोक पूरावो, रयण सिं दास बेसो ए ॥ ६१ ॥ तिहां बेसी गुरु देशना देशे, जविक जीवनां काज सरीशे, उदयवंत मुनि इम ज ए ॥ गौतमखामी तणो ए रास, जणतां सुतां लील विलास, सासय सुखनिधि संपजे ए ॥ ६२ ॥ एह रास जे जणे जगावे, वर मंगललबी घर यावे, मन वांबित आशा फले ए ॥ ६३ ॥ इति श्री गौतमस्वामीनो रास संपूर्ण ॥ ॥ श्री प्रजातसमयें मंगलाचार ॥ ॥ श्लोक ॥ मंगलं जगवान् वीरो, मंगलं गौत मप्रभुः ॥ मंगलं स्थूलिनाया, जैनोधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ १ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ एक जंबु जग जाणियें, बीजा नेम कुमार ॥ त्री जा वयर वखाणियें, चोथा गौतम स्वामि ॥२॥ अंगू अमृत वसे, लब्धि तणो जंगार ॥ ते गोयम गुरु सम रियें, वांबित फल दातार ॥३॥ श्लोक ॥ श्री एम हानसी लब्धि, केवल श्रीः करांबुजे ॥ नामलक्ष्मी मुर्मु खे वाणी, तं च श्री गौतमं स्तवे ॥४॥ सर्वारिष्टप्रणा शाय, सर्वाभीष्टार्थदायिने ॥ सर्वलब्धिनिधानाय, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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