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________________ (१६) सब समाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ॥ इति लघु अतिचाराः सपूर्णाः ॥ __॥ ए पडिक्कमणनामें चोथु आवश्यक, ए पांचमुं खमासमण. पडी श्छामि खमासमण पूर्वक हेग बे सीने श्वाकारेण संदिसह नगवन् ! चैत्यवंदन करुंजी॥ ॥ अथ चैत्यवंदन ॥ ॥ ॥ जय जय महाप्रजु, देवाधिदेव, सर्वज्ञ, श्रीवीतराग देव ॥ मुह दीहुं परमेसर, सुंदर सोम सहाव॥नूरि नवंतर संचिउँ, नहो सो सवि पाव॥ जे में पाप किया बालपणे, अहवा अन्नाणे॥ अल नवंतर सो सो खंग, जयो परमेसर ॥ तुह मुह दिलं, सिरि पास जिणेसर ॥ पास पसी पसा करी, वि नतडी अवधार ॥ संसारडो बीहामणो, सामी श्रावा गमण निवार ॥ हबडा ते सुलकणा, जे जिनवर पू जंत ॥ एके पुले बाहिरा, सो परघर काम करत ॥ कवणे वाडी वावीया, कवणे गूंथ्यां फूल ॥ कवणे जि नवर चढावियां, नाव सरीसां मूल ॥ वाडी वेलो म होरीयो, सोवन कुंपलीएण ॥ पास जिणेसर पूजिये, पंचे अंगुलीएण ॥ दो धोला दो सामला, दो रत्तोप ल वन्न ॥ मरगय वन्ना उन्नि जिण, सोलस कंचन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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