SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७१) खसंपत्ति जो आवी मली, मोसाने देवा मति ट ली ॥ धन उपर राखे जे नेह. परनव सापपणे थाय तेह ॥ १३ ॥ अधिको उठो बांधे तोल, दे वाचा नवि पाले बोल ॥ तेहनी लोकमां न होय लाज, परजव तेहना न सरे काज ॥१४॥ पोथी बा से बोले जेह, परजव मूरख थाये तेह ॥ नणे गु णे दे पोथीदान, परजव नर ते विद्यावान ॥१५॥ नाना महोटा कुवला हरी, खाते चूटे लीला क री॥ कीधां कर्म नवि वेलाय, मरीने नर ते को ढीयो थाय ॥१६॥ पांख पंखीनी काढे जेह, परजव ढूंटो थाये तेह ॥ पग कापे ने करे गल गलो, मरी नर ते थाये पांगलो ॥ १७ ॥ पाडोशीशु वढे दिन रात, परनवें तेसो न पामे संघात ॥ मात पिता सुत बश्शर धणी, परनव तेहने वढावढ घणी ॥ १७ ॥ अणदीतुं अण सांजदयुं कहे जेह, परनव बहेरो थाये तेह ॥ पारकी निंदा करे नर नार, जश नवि पामे तेह लगार ॥ १५ ॥ परना अवगुण ढांके जेह, नर नारी जस पामे तेह ॥ निंदा करे ने दीये ते गाल, परनव नर ते पामे बाल ॥ २० ॥रात्रिनोजन करे नर नार, ते पामे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy