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________________ ( १७० ) होये सुख ॥ ४ ॥ माखण मधु बीली अथाण, श्रडुं सूरण वरजे जाए ॥ गाजर मूला रतालु जेह, शुद्ध श्रावक ते ढंकें एह ॥ ५ ॥ फोगट फू ले माया करे, कहो केम ? ते नवसागर तरे ॥ जे दने देव गुरुशुं द्वेष, रूप न पामे ते लव लेश ॥ ६ ॥ बहु दाहाडानुं मेली करी, माखण तावे नियें धरी ॥ ते मरीने नरकें जाय, मानव हो य तो दाब्धज्वर थाय ॥ ७ ॥ दूध तणे वली लोनें जेह, पामा मूखें मारे तेह ॥ फरता ढोर मां गया वल्ली, तेह भूखें तरशें मरे टलवली ॥ ८ ॥ श्रख्य फूटी दीये जे गाल, परजव अधो थाये बाल ॥ मरो फीटो दीये जे गाल, परजव सुख न पामे बाल ॥ ए ॥ पाट पाटलानें वस्त्रदा न, सवशेकुं वली राध्युं धान ॥ मुनिवरनें दे मन उल्लास, तस घर लक्ष्मी रहे थिरवास ॥१० ॥ दे तां दान विमासमण करे, देइ दान मन चिंता धरे ॥ सुखसंपत्ति पामे अजिराम, बेहडे न हो य वसवा ठाम ॥ ११ ॥ धन थोडुंने दिये दान, महिल तेहने वाधे वान || ऋषिने देश करे रं गरोल, तस घर लखमी करे कल्लोल ॥ १२ ॥ सु For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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