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(ए) फरी त्रण नवकार गणी पूर्वोक्त रीतें पाक्षिक प्रति क्रमण समाप्त करीयें.
॥अथ चातुर्मासिक प्रतिक्रमणविधिमाह ॥ ॥ पाक्षिक प्रतिक्रमणनी पेरें चातुर्मासिकप्रतिक्रम णनो विधि पण जाणवो, परंतु एटबुं विशेष जे पादिकने ठेकाणे चाउम्मासियं कहेवं अने बार लोगस्सने स्थानकें, वीश लोगस्सनो काउस्सग करवो. बीजो सर्व पाक्षिकनी पेरें विधि जाणी लेवो!
॥अथ सांवत्सरि प्रतिक्रमण विधिमाह ॥ ॥ सांवत्सरिकनो पण पाक्षिकनी पेरें विधि जा णवो. परंतु एटलुं विशेष जे पाखीने स्थानके संवरियं कहे, अने बार लोगस्सने स्थानके चालीश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. बीजुं सर्व पाखीनी पेरें जाणवू ॥ इतिश्री अचलगढीया वकनां पांच पडिक्कमणानो विधि समाप्त थयो ।
॥अथ पच्चरकाण विधि प्रारंजः ॥ ॐ नमोबुद्धीपे छीपे, ये तीर्थंकराश्च धातकीख मे ॥ ये चापि पुष्कराः, तान् सर्वान् प्रांजलिर्वदे| ॥१॥ ख्यातोष्टापदपर्वतो गजपदः, सम्मेतशैला
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