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________________ ( ८२ ) वंति पावपस मिण, पास जि ॥ रोग जल जल तुह पजावेण ॥ १७ विसहर, चोरारि मयंद गय रण नयाई || पास जिए नाम संकि, त्तणेण पस मंति सवाई ॥ १८ ॥ एवं महाजयहरं, पास जि णिंदस्स संवारं ॥ जविय जणाणंदयरं, कल्लाण परंपर निहाणं ॥ १५ ॥ राय जय जरक रस्कस, कुसुमि डुस्सा रिरक पीडासु ॥ संासु दोसु पंथे, जब सग्गे तहय रयणी ॥२०॥ जो पढइ जो ा निसुण, ताणं कश्णो य माणतुंगस्स ॥ पासो पावं पसमेट, सयल वा चि चलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गते क मठा, सुरम्मि काणा जो न संचलिd | सुर नर किन्नर जुवई, हिं संधु जयन पासजिणो ॥ २२ ॥ एयस्स मनयारे, अठारस अस्करेहिं जो मंतो ॥ जो जाए सो जाय, पासं परमेसरं पयडं ॥ २३ ॥ तं नमह पासनाहं, धरणिंद नमंसि जय विणा सं ॥ जस्स पजावेण सया, नासंति वदवा सबे ॥ २४ ॥ जं समरंताण मणे, न होइ वाही न तं म दाडुकं ॥ नामपि य मंतसमं श्य नाह थुणामि जत्तीए ॥ २५ ॥ इतिश्री मानतुंगसूरिविरचित जय स्तोत्र नामक पंचमस्मरणं संपूर्णम् ॥ ५ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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