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१ ) छदं जी सणायारं ॥ ८ ॥ मन्नंति कीडसरिसं दूर परिनूढ विसम विसवेगा ॥ तुह नामरकर फुड सि, द्ध मंत गुरुया नरा लोए ॥ ए ॥ अडवीसु जिल तक्कर, पुलिंद सद्दल सद्द जी मासु ॥ जय विदु र वुन्न कायर, उल्लूरिय पहिचासु ॥ १० ॥ अवि बुत्त विवसारा, तुह नाह पणाम मत्तवावरा ॥ ववगय विग्घा सिग्घं, पत्ता हिय इति गणं ॥ ११ ॥ पलिया नल नयणं, दूर विद्यारिय मुद्द महाकायं ॥ नह कुलिस घाय वियलिय गइंद कुं लाजो ॥ १२ ॥ पणय ससंजम पचिव, न द मणि माणिक पडि पडिमस्स ॥ तुह वयण पहरणधरा, सीहं कुद्धंपि न गणंति ॥ १३ ॥ स सिधवल दंत मुसलं, दीहकरुल्लालबुढि उछाहं ॥ महु पिंग नयण जुलं, ससलील नव जलहरा रावं ॥ १४ ॥ जीमं महागइंदं यच्चासन्नंपि ते न वि गति ॥ जे तुम्ह चलण जुलं, मुणिवश तुं गं समझीणा ॥ १५ ॥ समरंमि तिकखग्गा, नि घायपवित्र कबंधे ॥ कुंत विणिजिन्न करि कल, ह मुक्क सिक्कार पउरंमि ॥ १६ ॥ निक्रिय द प्पुद्धररिज, नरिंदनिवहा जडा जसं धवलं ॥ पा
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