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॥अथ चार मंगल ॥ ॥ सिद्धार्थ नूपति शोहे क्षत्रियकुंमें, तस घेर त्रिशला कामिनी ए ॥ गजवर गामिनी पोढीय जामिनी, चनद सुपन लहे जामिनी ए॥१॥ त्रु टक ॥ जामिनी मध्ये शोजतां रे, सुपन देखे बाल ॥ मयगल वृषन ने केसरी, कमला कुसुमनी मा ल ॥२॥ इंछ दिन कर ध्वजा सुंदर, कलश में गल रूप ॥ पद्मसर जलनिधि उत्तम, अमरवि मान अनूप ॥३॥ रत्ननो अंबार उज्ज्वल, वह्नि निर्धूम ज्योत ॥ कल्याण मंगलकारी माहा, क रत जग उद्योत ॥ ४ ॥ चउद सुपन सूचित वि श्वपूजित, सकल सुख दातार ॥ मंगल पहेलु बो लीयें, श्री वीर जगदाधार ॥५॥ मगधदेशमा नयरी राजगृही, श्रेणिक नामें नरेसरू ए॥धणवर गोवर गाम वसे तिहां, वसुनूति विप्र मनोहरु ए ॥६॥ त्रूटक ॥ मनोहरु तस मानिनी रे, पृथिवी नामें नार ॥ अनूति आदेय बे, त्रण पुत्र तेदने सार ॥ ७ ॥ यज्ञकर्म तेणें श्रादह्यु, बहु विप्रने स मुदाय ॥ तिणे समे तिहां समोसस्या, चोवीश मा जिनराय ॥७॥ उपदेश तेहनो सांजली, लीधो
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