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(५६) या रयण चित्ताई ॥ सिंहासण मेगेगं, सपाय पीढं रयण मयचित्तं ॥ ५५ ॥ पश् सिंहासणमिंदो, पश् लद्दासणग मग्गम हिसी ॥ श्यति पयाहिण पुवं, गय अग्गपयाणि नुवि दोवि ॥ ५३॥ पडिबि बिय तो सको, वंदर वीरं त दसणजद्दो ॥ विह्मिय मणसो हरि चो, यणेण विलय पवा ॥ ५४ ॥ तो सुरव मुणिचलणे, खामिय उवबोहि दिवं पत्तो॥ गय अग्गपर्ट एवं, जाउँ तहिं थुणहवी रजिणं ॥ ५५ ॥ तिरकसिलाए उसनो, वेाति श्रागम्मि पडिम उजाणे ॥ जा बाहुबलिप्पनाए, एश्ता विहरी नयवं ॥ ५६ ॥ तो तहियं सो कार, जिणपय गमि रयणमय पीढं ॥ तवरि जोयणमाणं, मणि रयण विणि म्मियं दंमं ॥ ५७ ॥ तस्सोवरि रयणमयं, जोयण परिमंमलं पवरचकं ॥ तं धम्मचक तिबं, जवजल निहि पवर बोहि छ ॥ ५७ ॥ सिवनयरी कुसग्गवणे, पासो पडिम हि य धरणिंदो ॥ उवरि तिरत्तं बत्तं, धरिंसुका सीथ वरमहिमं ॥५॥ तं देखें सा नयरी,अहिबत्ता नाम जणे जाया ॥ तहियं नमिमो पासं,विग्य विणासं गुणावासं॥६०॥पडिमाए ठियं पासं, कम
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