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वायोनिमांहे, महारे जीवें जिको कोश् जीव उहव्यो होय, विराध्यो होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि उकडं ॥ इति ॥श्छाकारेण संदिसह जगवन् ! अढार पाप स्थानक आलोचं जी.
॥अथ अढार पाप स्थानक ॥ ॥ पहेले प्राणातिपात, बीजे मृषावाद, त्रीजे अ दत्तादान, चोथे मैथुन, पांचमे परिग्रह, बठे क्रोध, सातमे मान, आठमे माया,नवमे लोन, दशमे राग, ग्यारमे वेष, बारमे कलह, तेरमे अन्याख्यान, चौ दमे चाडी, पन्नरमे रति अरति, शोलमे परपरिवाद, सत्तरमे माया मृषा, अढारमे मिथ्यात्व शल्य, ए अढारे पापस्थानकमांहे जिको को पापस्थानक म हारे जीवें सेव्यु होय, सेवराव्युं होय, सेवताप्रत्ये अ नुमोद्यं होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि उकडं ॥ इति ॥ श्लाकारेण संदिसह नग वन् ! गुरुस्थापना करूं जी॥
॥अथ पंचिंदिय॥ ॥ पंचिंदिय संवरणो, तह नवविह बंजचेर गुत्ति धरो ॥ चविह कसाय मुक्को, श्य अहारस गुणे हिं संजुत्तो॥ १॥ पंच महत्वयजुत्तो, पंच विहायार पा
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